Yadav Jati Ka Arth !!
Yadav Jati Ka Arth !!
यादव जाती का अर्थ !!
यादव वंश प्रमुख रूप से अहीर – गँवार अंधक, व्रष्णि तथा सत्वत नामक समुदायो से मिलकर बना था, जो कि भगवान कृष्ण के उपासक थे।
यह लोग प्राचीन भारतीय साहित्य मे यदुवंश के एक प्रमुख भाग के रूप मे वर्णित है। प्राचीन, मध्यकालीन व आधुनिक भारत मे अहीर यादव नाम से जाने जाते है।
पुराणों के विश्लेषण से यह निश्चित रूप से मान्य है कि अंधक,वृष्णि, सत्वत तथा अहीर जातियो को संयुक्त रूप से यादव कहा जाता था जो कि श्रीक़ृष्ण की उपासक थी। परंतु यह भी सत्य है कि पुराणो मे मिथक तथा दंतकथाओं के समावेश को नकारा नहीं जा सकता, किन्तु महत्वपूर्ण यह है कि पौराणिक संरचना के तहत एक सुद्र्ण सामाजिक मूल्यो की प्रणाली प्रतिपादित की गयी थी।
यादव जाति के मूल मे निहित वंशवाद के विशिष्ट सिद्धांतानुसार, सभी भारतीय गोपालक जातियाँ, उसी यदुवंश से अवतरित है जिसमे श्रीक़ृष्ण (गोपालक व क्षत्रिय) का जन्म हुआ था । उन लोगों मे यह द्रढ़ विश्वास है कि वे सभी श्रीक़ृष्ण से संबन्धित है तथा वर्तमान की यादव जातियाँ उसी प्राचीन वृहद यादव सम समूह से विखंडित होकर बनी हैं।
यादव शब्द कई जातियो को आच्छादित करता है जो मूल रूप से अनेकों नामों से जानी जाती है, हिन्दी क्षेत्र, गुजरात व पंजाब मे – अहीर ग्वाला, महाराष्ट्र, गोवा, आंध्र व कर्नाटक मे- गवली, जिनका सामान्य पारंपरिक कार्य चरवाहे, गोपालक व दुग्ध-विक्रेता हैं ।
यादव लगातार अपने जातिस्वरूप आचरण व कौशल को उनके वंश से जोड़कर देखते आए हैं जिससे उनके वंश की विशिष्टता स्वतः ही व्यक्त होती है। उनके लिए जाति मात्र पदवी नहीं है बाल्कि रक्त की गुणवत्ता है, और ये द्रष्टव्य नया नही है। अहीर (वर्तमान मे यादव) जाति की वंशावली एक सैद्धान्तिक क्रम के आदर्शों पर आधारित है तथा उनके पूर्वज, गोपालक योद्धा श्री कृष्ण पर केन्द्रित है, जो कि एक क्षत्रिय थे।
क्षत्रियों का प्रधान वंश यादव वंश है :-
क्षत्रियों का प्रधान वंश यादव वंश है। यादव-कुल की एक अति-पवित्र शाखा ग्वालवंश है जिसका प्रतिनिधित्व नन्द बाबा करते थे । बहुत से अज्ञानी दोनों को अलग -अलग वंश का बताते हैं । मूर्खों को ये मालूम नहीं की नन्द बाबा और कृष्ण के पिता वासुदेव रिश्ते में भाई थे जिसे हरिवंश पुराण में पूर्णतः स्पष्ट किया गया है। भागवत पुराण में भी इस बात का जिक्र है । ग्वालवंश में ही समस्त यादवों की कुल-देवी माँ विंध्यवासिनी देवी ने जन्म लिया था । भागवत पुराण के अनुसार तो भगवान् श्रीकृष्ण के गोकुल प्रवास के दौरान सभी देवी-देवताओं ने ग्वालों के रूप में अंशावतार लिया था। इसीलिए ग्वालवंश को अति-पवित्र माना जाता है ।
अहीर शब्द दो शब्दों की संधि से बना है . अहि + ईर = अहीर संस्कृत शब्दकोश के अनुसार अहि शब्द का अर्थ है सर्प , ” ईर ” शब्द क्रिया विशेषण है , जिसका अर्थ है वध करने वाला । अहीर = सर्प का वध करने वाला ।
महामूर्ख लालू के अनुसार अहीर गँवार शब्द का अर्थ है। अहि का अर्थ सर्प और ईर का अर्थ अपने ही कुल समाज और जाति को डंसने वाला, बदनाम करने वाला।
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